मैन्त की ताकत

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कोइ देस म एक सेठ रै छो। वांकै गोडै घणो पीसो छो। ऊंकै गोडै घणी बडी ज्याग घणी जमीं-जायदाद अर ऊंको बडो परवार छो। पण एक मसीबत छी ऊ सेठ न नीन्द नावछी, कदी-कदी थोड़ी झमक लाग जावछी। अर घणा खोटा सपणा आवैछा। सेठ घणी चन्ता म रैछो। उनै ऊंको घणो अलाज करायो। पण ऊंको रोग घटबा की बजाय बढतो ही जार्यो छो। एक दन ऊ देस म एक सादू आयो ऊ एक कुटीया म रूक्यो। जस्यांई सेठ न भणक लागी क कुटीया म कोई सादू माराज आर्या छै। तो सेठ वांकै गोडै ग्यो। अर सादू कतांई अपणो दुखड़ो सूणाबा लाग्यो। क माराज जस्यां बी होवै थां म्हारा दुख न मेटो। तो सादू न सेठ सूं खी क थां कांई लंगड़्‍या छै क। तो सेठ खबा लाग्यो। क म्हूं कस्यां लंगड़्यो हो सकूं छूं, मारै तो दो हात अर दो पग छै। म्हूं तो बड़्‍या छूं। तो सादू खैबा लाग्यो क सेठ लंगड़्‍यो मनख ऊ होवै छै, जिकै हात-पग तो रै छै पण ऊ वानै काम म न्ह ले। या बात सूणर सेठ कांई खै तो, सेठ सादू की बातां सूणर्यो छो अर सोंचर्यो छो क म्हूं तो थोड़ो सो काम बी म्हारा हाळयां क वालै करांऊ छूं। तो सादू न सेठ का बच्यार सूणर उसूं खी क अगर तू रोग सूं बचबो छावै छै तो थनै अपणा हात-पग सूं अतनी मैन्त करणी पड़ैगी ज्यातांई तू थाक न्ह जावै। अर सेठ न अस्यांई करी उनै दन-रात घणी मैन्त करी। अर उनै रात म घणी नीन्द आई। ऊ यो काम देखर घणो खुस छो।

फळ- मैन्त को फळ सदा बड़्‍या रै छै।